तुम्हारे गोरे उदीप्त चेहरे पर
कजरारी जाग्रत जिग्यासु आखे
कंधो पर लटकती दो काली लम्बी चोटिया
छात्रा की वेशभूषा में
तुम्हारा प्रथम साक्षात्कार
मेरी अनुभूति में
अभी ताजा है ।
भावो की सहज अभिव्यक्ति है कविता
विषय पर तुम्हारी चर्चा
मुझेअभी भी याद है ।
भाषा कक्ष में तुम्हारी सार्थक उपस्थिति
सभी का ध्यान आकृष्ट करती थी ।
कामिनी के साथ तुम्हारी जोड़ी
चर्चा में रहती ।
धीरे धीरे हम पास आने लगे
एक दूसरे की नजरों में छाने लगे
बदल रही थी नजरों में तुम्हारी पहचान
तुम समीप से समीपतर हो गई
पता नहीं कब मेरे दिल में
मेरे दिल की हो गई ।
न दिन था न रात थी
बस तुम थी और तुम्हारी बात थी ।
जागते हुए सोता था और सोते हुए
तुम्हारे ही सपनों में रोता था ।
कई बार राह चलते हुए
लोगों से टकराया
झिडकी सुनी गाली खाई
अन्धे होने की उपाधि पाई।
कई बार घर से दूध लेने गया
आलू लेकर घर आया
और ये समझ में आया
कि प्यार में अंधा होना
इसे ही कहते हैं ।
साल बदला तुम भी पास मैं भी पास
दूरिया ही दूरिया हो गई
सब हवा हवाई हो गई ।
मैं करता रहा विचार
कैसे संदेश भेजू
कैसे कहूँ __
कि मैं तुम्हारे प्यार में पागल
तुम्हारी राह तकता हूँ
तुम्हारा नाम जपता हूँ
उदास हूँ उदासी भरे गीत सुनता हूँ ।
फिर तुम्हारा पत्र आया
प्यार का अहसास लाया ।
तपती दुपहरी में
तुम्हारा एक एक शब्द
फुहार सा लग रहा था ।
जाने क्या चल रहा था
पत्र सूचनाओ से भरा था
परीक्षा का परिणाम आया था
तुमने नई कक्षा में प्रवेश पाया था
मिलने की आकांक्षा थी
शब्दो में छिपी हुई ।
पत्र के अंत में
केवल तुम्हारी लिखा था
यह शब्द पूरे पत्र में बेशक सबसे आखिरी था
पर यही पत्र की आत्मा
यही पत्र का सार ।
प्यार जीवन का आधार
यह बहुत सुना था
पहली बार कोई शब्द दिल की धड़कन बना था
मैंने पत्र को बार बार पढ़ा था
यहाँ अपार सम्भावनाए थीं
तस्वीर बिलकुल साफ थी।
कोई वहां खड़ी थी मेरे लिए
उसका दिल बहुत बड़ा था
कमनीय देह स्वर्ण गात
उसके स्वर में विश्वास
बढ़ा दिया था उसने अपना हाथ
मैं असमंजस में खड़ा रहा
दे नहीं पाया प्रत्युतर।
आज भी चोराहे पर खड़ा हूँ
खाली हाथ
अभी भी तुम्हारी ओर निहार रहा हूँ
सिर को धुन रहा हूँ
आती जाती कारों को गिन रहा हूँ ।