इस शहर का अजनबी चेहरा
ईमानदारी से आखे चुरा कर
भ्रष्टाचार का गमछा ओढ कर
दनदनाता फिर रहा है।
दाना फेंक रहा है
कुछ नये शिकार तलाशता है
गोल गोल शब्द चमकीले चमकीले
फैला दिये है शहर के रास्तों पर ।
राष्ट्रीय योजनाओ के मानचित्र
उन की जेब में कसमसा रहे हैं ।
शहर के भीतर एक और शहर
जागता रहता है
परोसता है युवा शरीर
सिक्के उछालते हैं कुछ धूर्त लोग
चमकीले सुवासित बदन थिरकते बहकते
गोद में कसमसा रहे हैं ।
भावनाओ का अहसास दम तोड़ता है
रूपयो की खनक
कानो में मिठास घोलती है ।
मरी हुईं बेदम काया
अपने कंधों पर ढोते हुए
कुछ समझदार लोग
घरों को लौटते हैं ।
ईमानदारी को चेहरे पर
मुस्कान की तरह लपेटकर।