छिछले तालाब में
ठहरा हुआ पानी
सड़ता हुआ पानी बदबूदार
पास से निकलता हर आदमी
ढाप लेता है नाक को
किसी ने नहीं की कोशिश
साफ सफाई की
लोग उसे कूडादान समझ बैठे
आते जाते लोग फेंकते रहे
कूडे से भरी थैलिया
धीरे धीरे एक जल स्रोत
मर रहा है
कोई कुछ नहीं कर रहा
सरकार निकम्मी कहते हुए
आगे बढ़ रहा
फेंकता रहा अपनी गंदगी पानी में
तालाब छटपटाता रहा
अपनी मौत मरते हुए।
तालाब जल रहा है
अपने कूडे के ढेर के साथ
धुआं धुआं हर ओर
कीचड़ पर फैला कचरा जलता है
लोग और कचरा फेंकते हैं
प्रदूषण पर बहस जारी है
प्रदूषण पर जागरूकता अभियान
चल रहा है
लोग स्लोगन लिखे प्लेकार्ड
लहराते हुए चल रहे हैं
बंद मुट्ठी हवा में उछाल कर
नारा लगाते हैं
नहीं चलेगा नहीं चलेगा
ये प्रदूषण नहीं चलेगा
अगले रोज सारे प्लेकार्ड
उसी तालाब के किनारे पड़े हैं
जलने के लिए।
बहुत अच्छी कविता है।संवेदना और यथार्थ दोनों का समावेश है
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धन्यवाद कमेन्ट करने के लिए ।
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