हवा मैं कुछ नमी सी है
उसकी चर्चा कुछ चली सी है
धड़कनो पर नहीं अख्तियार मेरा
उसकी पदचाप कुछ सुनी सी है।
सुबह से दोपहर ,दोपहर से शाम हुई सी है
शहर में सब है पर कुछ कमी सी है
आखो पर नही रहा अख्तियार मेरा
उसकी राह पर लगी सी है ।
कौन थामे आरजू की उड़ान
दिल की चाहत कुछ जगी सी है
जागा हूँ सोया सोया सा
उसकी आँखों से आँखें मिली सी है ।
बहुत खूब
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