सपनों की ऊंची उड़ान में
वतन की मिट्टी बसी है
हर कदम देश की शान में चलता हूँ ।
आग से खेलता हूँ धुँआ धुँआ रातों में
प्राण हथेली पर रखकर निगरानी करता हूँ ।
अंधेरे में घात लगाए बैठे स्नाईपर को मिटाने
अंगारों पर चलता हूँ ।
अंधेरों में चलता हूँ
रौशनी की रखवाली के लिए ।
रातभर जागता हूँ
वतन की मीठी नींद के लिए ।
दो
चट्टानों से टकराने को
हमने कदम बढाया है ।
राष्ट्र ध्वज की आन बान में
बलिदानी स्वर गाया है ।
पहरेदार हैं जन धन के हम
आँख टिकी है दुश्मन पर ।
चैन न लेने देंगें उसको
जो हमसे टकराया है ।
वतन की मिट्टी की खातिर
हम ने शस्त्र उठाया है ।