पहाड़ से रिसती बूंद बूंद
बनते बनते बन गयी नदी
गर्जना करती
पहाडों से टकराती
अपना रास्ता बनाती
निरन्तर गतिमान है ।
पत्थरों ने सीख लिया
पानी बनकर बहना
गतिमान रहना
गति ही जीवन
स्थिर होना निरर्थक
ऊपर से कठोर पर्वत
भीतर से स्नेहासिक्त हो
द्रवित हो रहा है
बूंद बूंद बह रहा है ।
लय होने में उल्लास है
हास परिहास है
जीवन का गीत है
ऊर्जा है उमंग है
मधुर संगीत है
परिवर्तन है नर्तन है ।