फूल की पंखुड़ियों की तरह
बिखर जाऊंगा रेशा रेशा
अपने खेत की मिट्टी में
मिल जाऊंगा खाद की तरह
रेत में रेत बन जाऊंगा ।
अपना शरीर को पसीने में
पानी पानी कर कर के
सूख जाऊंगा सूखे पत्ते सा
टूटकर बिखर जाऊंगा रेत सा ।
फिर नया अंकुर बन कर
तन खड़ा हो जाऊंगा
सारी खरपतवार के बीच से
सांस खींच कर लहलहा उठूंगा ।
चमचमाती फसल की चमक सा
खिलखिलाकर प्रकट हो जाऊंगा
अपने पिता -पितामह की तरह
राष्ट्र सेवा मानव सेवा के लिए उत्सर्ग हो जाऊंगा ।