देश जब वसंत के रंगों
में रंगा हुआ था
हर ओर रंगोत्सव चल रहा था
फूलों की खुशबू हर ओर छाई थी
हर मन प्रफुल्लित था होली नजदीक आई थी
गीत और संगीत की महफ़िल सजाने की तैयारी थी
तब दिल्ली में कुछ लोग नफरत की साज़िश में
दिन रात पत्थर , पैट्रोल बम,गोली बारूद सजा रहे थे
फिर खेला गया खूनी खेल
इंसानियत की अर्थी निकली
खेली खून की होली
मानवता हुई शर्मसार
गली गली फैला पडा़ है
नफरत का सामान
लंगड़ाती चल रही है जिंदगी
टूटी हुई बैशाखी के सहारे
कुछ है जो खो गया
नफरत की आग में
जलते मकानों दुकानों संग
टूटी हुई चारपाई , मेज,कुर्सी के पास
एक गमला भी टूटा है
जिस पर लिखा है विश्वास
फिर भी पौधे में निकल आई है
छोटी-छोटी क ई कलियां गुलाब की
फिर विश्वास की फसलें उगेगीं
फिर गली में उडे़गा गुलाल
फिर मन करेगा पड़ोसी को दुआ सलाम ।
उस घटना से दिल आज भी दुखी है लेकिन सियासी चाल बड़ी क्रूर और बेशर्म है।
पसंद करेंपसंद करें
आपका हार्दिक धन्यवाद
पसंद करेंपसंद करें
हार्दिक धन्यवाद
पसंद करेंपसंद करें