हमारे तुम्हारे सपने
अधपके ,कच्चे कच्चे
बनते रहे, बिगड़ते रहे
आकाश में उड़ान भरते
धरा पर विचरण करते
सपने हमारे तुम्हारे ।
नहीं सोचा था
यूं ही बन्द रह जाएंगे
पलकों में सिमट कर
दूर चले जाएंगे
राह बदल जाएंगे
बात होगी जब कभी
बात बदल जाएंगे
सपने हमारे तुम्हारे सपने।
देखेंगे और अदेखा कर
आगे बढ़ जाएंगे
आंखों की हसरतों को
हवा में उड़ायेंगे
हूक सी उठेगी तो
किस को बताएंगे
खुद को समझायेंगे
सपने हमारे तुम्हारे सपने।
चांद की चमक सी तुम
खुशबू बसन्त की तुम
मादकता से सरोबार
आम की झुकी सी डाल
मेरे मन आंगन
तुम्हीं रची तुम्हीं बसी
भूल नहीं पाया हूं
भूल नहीं पाऊंगा
मेरी सपन सुंदरी
गले मिलो एक बार
सपने हजार हजार
करो कभी तो साकार
सपने हमारे तुम्हारे सपने।