एक सहमी हुई लड़की
जब चलती है सन्नाटे के बीच
अपनी उपस्थिति को नकारते हुए
सन्नाटे में विलीन होने को
सन्नाटे को ओढ़कर ।
कितना कठिन है
यह जानना कि
झूठी जीत के आगे हार खड़ी है
वह सधे कदम चलती है
प्यारे के प्यार पगी ।
उसे विश्वास नहीं है
प्यार के सतरंगी सपनों के अहसास का
रिक्तता के बोध से भर जाना
वह समझने को तैयार नहीं
उदासी की इबारत को
जो हर रोज बुनी जाती है
उसके चारों ओर।
खबरों में रोज आती है
कुछ बदनसीब लड़कियां
सपनों के सतरंगी पायदान पर खड़ी होकर
जब वे थामती हैं हाथ
नये रास्ते पर जाने का
दुस्साहस का कवच पहनकर
तो फिसल जाती हैं
अंधेरे कमरे के सन्नाटे में
जहां कुछ सम्भावित दुर्घटनाएं
उनकी राह तक रही हैं।
उसकी चिल्लाहटें
टांगों के बीच मुंह छिपाकर
सुहागरात का सपना
तार तार होते देखती हैं
उसे याद आती है
मां की सीख
जिसे उसने यूंही
उड़ा दिया
हवा का बेमौसमी
झोंका समझकर ।
रक्त पात का शिकार
उसका कौमार्य
महज एक खबर भर है
जो पुलसिया डायरी में
अन्तिम पृष्ठ पर
लिखी जाती हैं
उखाड़ फेंकने के लिए।