शाम के पाँच बजे हैं
धूप धुन्धली मुरझाई सी
बादल हल्के हल्के
यहाँ वहां छितराए हुए
किसी को ढूंढते से चल रहे हैं
पेड़ों के पत्ते सरसरा रहे हैं
कानों कान कह रहें हैं
लाल कुर्ती नीली जीन्स पहनें
वो जो पार्क में अकेली बैठी है
अपने मोबाइल में खोई है
लगता है दोपहर में खूब रोई है
पति से झगड़ा हुआ है ।
काम गड़बड़ ये किया है
पति जब नहाने गया था
मैसेज उस ने पढ़ लिए थे
कौन है यह जिसने मुझसे
प्यार मेरा है चुराया
हाय मेरा भाग्य फूटा
दिल है टूटा
किस जली ने मुझको जलाया
चैन उसका छीन लूगी ।
पति जब नहा कर के आया
घर मे फिर भूचाल आया
तुम सच सच बताना
कौन है यह
जो तुम्हारी दिल की रानी
मैं तुम्हारी कुछ नहीं क्या
तन समर्पित मन समर्पित
जीवन सर्वस्व समर्पित
फिर तुम्हारा प्यार किसी और को क्यों समर्पित ।