तुम समय के प्रवाह में
बह गयी हवा सी
मैं खडा़ निहारता रह गया
तुम अभी थी
अभी नही हो
निश्चेष्ट तुम्हारी देह
प्राण तत्व निकल गया
किसी अंजान यात्रा पर ।
माँ ,……।माँ ,….।।
मैं पुकारता रह गया
खाली हाथ खडा़ रह गया
कुछ समझ नही पा रहा हूँ
करूँ तो क्या करूं
दिशाहीन सा भ्रमित सा ।
क्रियाक्रम की रस्में निभाकर
सगे संबधियों के बीच
अकेला सा, खोया खोया सा
खड़ा हूँ
धीरे धीरे सब लौट गये हैं
सन्नाटा है घर मैं ।
माँ मुझे घर में हर ओर दिखती है
माँ मेरे विचारों में विद्यमान
माँ मेरे अस्तित्व का हिस्सा
माँ है तो मैं हूँ ।
सचमुच दुनिया में मां का कोई विकल्प नहीं।उस खालीपन को कोई नहीं भर सकता।
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आपक हार्दिक धन्यवाद
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