विश्व के समक्ष आज अनेक चुनोतियाँ खड़ी हुई हैं उनमें सबसे अधिक संकट पूर्ण चुनौती पर्यावरण असंतुलन को लेकर आ रही है।प्राकृतिक असंतुलन के कारण अतिवृष्टि,अनावृष्टि,सूखा ,बाढ,ग्लेशियर का विलोपन,मौसम का असंतुलन जैसी समस्याएं प्रतिवर्ष सामने आ रही हैं ।औधोगिक विकास ने वायु,जल,ध्वनि प्रदूषण को बढा दिया है।शहरीकरण के बढते दबाव और जनसंख्या विस्फोट ने मनुष्य की संवेदनाओं को कुंठित कर दिया है।मनवीय मूल्यों का संकट गहरा हो चला है। सद्भावना,सदाशयता,सहानुभूति,करुणा ,दया ,परोपकार और प्रेम जैसे मूल्य श्रीहीन से हो गये हैं ।समाज में निराशा,ऊब और चिंताएं बढ रही हैं ।ऐसे संकट के समय मनुष्य प्रकृति की ओर उन्मुख होता है ।
प्रकृति की कमनीयता मनुष्य को व्यापक संदर्भों से जोड़ देती है ।भारतीय साहित्य प्रकृति के उत्प्रेरक स्वरुप को उद् घाटित करता है.।प्रकृति का साहचर्य मनुष्य के हृदय का उन्नयन कर उसे उँच भावभूमि पर स्थापित कर देता है ।प्रस्तुत कहानी संकलन प्रकृतिकी भव्यता का उद् घाटन करने का एक प्रयास है।विभिन्न भारतीय भाषाओं सै संकलित ये कहानियाँ मनुष्य ओर प्रकृतिके संबंधों का पुनराख्यान हैं ।आज जो समस्याएंहमें घेरे खडी़ है.वो इसलिए कि हम प्रकृति से विमुख हो चले हैं । ये कहानियाँ
प्रकृति की ओर लौट चलने का आह् वान करती प्रतीत होती हैं ।